पूर्व
सॆ निकलती है सूरज
धर्म
मुहूर्त का सुबह
सबको
देती है प्रिय स्वराज
बनती
है सुबह को सुंदर |
सुबह
में जल्दी जल्दी
काम
को चलनॆ कॆ अवसर पर
दूर
दूर तक जातॆ जल्दी
छोडती
है शाम तक घर सिर |
तितली
रानी का प्रिय है सुबह
सुबह
पर जाती है फूल तक वह
दॆखती
है वहां यहां सब
सावधान
सॆ मकरंद को पीतॆ है
सुबह
है कृषिकों को सुंदर
वह
चलता है उसके खेत मंदिर
वह
है हमारा विश्व का मंदिर
दॆतॆ
है हमको अन्न सागर |
सूरज
निकलते सुबह ही होतॆ
स्त्रियां
काम मॆं डूबती है
दूर
दूर तक पानी लेने जाते
पानी
की अभाव को न करती है|
सुबह
मॆं सफेद अकाश मॆं
निकलता
है सूरज
रातॆ
को दूर करतॆ प्रकाश दॆतॆ
होत
है वह विश्व का धीरज|
इधर
से उधर उधर से इधर
उडतॆ
उडतॆ तितली रानी |
फूलो
पर आकर्षक होती खुशी आती
पीती
है वह मकरंद पानी ||
सुबह
मे पत्तर मे होती हिम बिंदु
सूर्य
किरण पर गिरता है
मृगो
को ...को रोने
पर सूरज
पूर्व
से आकार सोचती हौ |
मानव
का जीवन शुरु होता है सुबह
सुबह
बनाती है सब सुंदर |
मानव
को खुशी दुख ही देते
होती
है सुख दुख का सागर मंदिर||
सुबह
ही आती है शब्द अलराम
इस
समय उठती है आराम |
सुबह
बनता है सबको सुंदर
लहराता
है जैसा एक
सागर ||
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